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ग़ज़ल
फ़ितरत-ए-हुस्न में अगर अहलियत-ए-वफ़ा नहीं
मुझ को ख़ुदा से है गिला आप से कुछ गिला नहीं
राजेन्द्र बहादुर माैज
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नज़्म
नदामत
हम जो इक जाँ के सफ़र पर हैं रवाँ बरसों से
हम को मालूम नहीं कब और कहाँ ख़त्म हो ये
मोहम्मद अफ़सर साजिद
नज़्म
गौतम-बुद्ध
इक जनाज़े को उठाए जा रहे थे चंद लोग
तुम ने पूछा क्या हुआ क्यूँ जा रहे हो तुम मलूल
मयकश अकबराबादी
नज़्म
वस्ल-ए-शीरीं के लिए
दूर तकज़ीब का फ़रहाद हूँ मेरी ख़ातिर
हक़ की आवाज़ सदाक़त की और शीरीं है
ज़हीर सिद्दीक़ी
शेर
ऐ ख़ुदा दुनिया पे अब क़ब्ज़ा बुतों का चाहिए
एक घर तेरे लिए इन सब ने ख़ाली कर दिया