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ग़ज़ल
फेक दो घर से हया बाज़ार में बिकते रहो
बाप को घर के किसी कोने में जाँ दे दी गई
इरफान आबिदी मानटवी
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ग़ज़ल
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
तुम्हें चाहूँ तुम्हारे चाहने वालों को भी चाहूँ
मिरा दिल फेर दो मुझ से ये झगड़ा हो नहीं सकता