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नज़्म
मुझे सोचने दे
भूक और प्यास से पज़-मुर्दा सियह-फ़ाम ज़मीं
तीरा-ओ-तार मकाँ मुफ़लिस ओ बीमार मकीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आज़ादी
फ़ज़ा-ए-शाम-ओ-सहर में शफ़क़ झलकती है
कि जाम में है मय-ए-लाला-फ़ाम-ए-आज़ादी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
पियो कि मुफ़्त लगा दी है ख़ून-ए-दिल की कशीद
गिराँ है अब के मय-ए-लाला-फ़ाम कहते हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
खींचे दिल-ए-इंसाँ को न वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम
अज़दर कोई गर उस को निगल जाए तो अच्छा