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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो सुब्ह कभी तो आएगी
जब धरती करवट बदलेगी जब क़ैद से क़ैदी छूटेंगे
जब पाप घरौंदे फूटेंगे जब ज़ुल्म के बंधन टूटेंगे
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
ऐ इश्क़ कहीं ले चल इस पाप की बस्ती से
नफ़रत-गह-ए-आलम से ल'अनत-गह-ए-हस्ती से
अख़्तर शीरानी
नअत
لَم یَاتِ نَظیرُکَ فِی نَظَر مثل تو نہ شد پیدا جانا
جگ راج کو تاج تورے سر سوہے تجھ کو شہ دوسرا جانا
अहमद रज़ा खां रज़ा
नज़्म
ज़बाँ-दराज़
ज़बान में फ़ी लफ़्ज़ एक इंच इज़ाफ़ा हो रहा है
पहले भी तो ये काँधों पर पड़ी थी
अम्मार इक़बाल
शेर
यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है