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नज़्म
ख़्वाबों को समझौते रास नहीं आते
दिल में इक मादूम ज़माने के
और इक दुनिया के होने की
अनवर सेन रॉय
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नज़्म
एक मंसूबे में दर-पेश दुश्वारियाँ
मैं रौशनी में इतनी ग़लतियाँ करता हूँ
जितनी लोग अंधेरे में नहीं करते होंगे
अनवर सेन रॉय
शेर
दिल सदा तड़पे है मेरा मुर्ग़-ए-बिस्मिल की तरह
या कि सीखी मुर्ग़-ए-बिस्मिल ने मिरे दिल की तरह
राय सरब सुख दिवाना
ग़ज़ल
जब न तब सुनिए तो करता है वो इक़रार बग़ैर
गुफ़्तुगू हम से उसे पर नहीं इंकार बग़ैर