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ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
नज़्म
मिरे हमदम मिरे दोस्त!
और ये सफ़्फ़ाक मसीहा मिरे क़ब्ज़े में नहीं
इस जहाँ के किसी ज़ी-रूह के क़ब्ज़े में नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
दरीं हसरत सरा उमरीस्त अफ़्सून-ए-जरस दारम
ज़ फ़ैज़-ए-दिल तपीदन-हा ख़रोश-ए-बे-नफ़स दारम
अल्लामा इक़बाल
शेर
अमीर ख़ुसरो
नज़्म
ज़ोहद और रिंदी
मैं ने ये कहा कोई गिला मुझ को नहीं है
ये आप का हक़ था ज़े-रह-ए-क़ुर्ब-ए-मकानी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ये ग़ज़ल अपनी मुझे जी से पसंद आती है आप
है रदीफ़-ए-शेर में 'ग़ालिब' ज़ि-बस तकरार-ए-दोस्त