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नज़्म
रक़ीब से!
आग सी सीने में रह रह के उबलती है न पूछ
अपने दिल पर मुझे क़ाबू ही नहीं रहता है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
इस नई आग का अक़्वाम-ए-कुहन ईंधन है
मिल्लत-ए-ख़त्म-ए-रसूल शोला-ब-पैराहन है
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
तन्हाई
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
निसार मैं तेरी गलियों के
यूँही हमेशा खिलाए हैं हम ने आग में फूल
न उन की हार नई है न अपनी जीत नई