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नज़्म
शिकवा
टल न सकते थे अगर जंग में अड़ जाते थे
पाँव शेरों के भी मैदाँ से उखड़ जाते थे
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं
गर इश्क़ किया है तब क्या है क्यूँ शाद नहीं आबाद नहीं
जो जान लिए बिन टल न सके ये ऐसी भी उफ़्ताद नहीं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
बंजारा-नामा
क्या मंदर मस्जिद ताल कुआँ क्या खेती बाड़ी फूल चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ये दुनिया-भर के झगड़े घर के क़िस्से काम की बातें
बला हर एक टल जाए अगर तुम मिलने आ जाओ