aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بول"
बालमोहन पांडेय
born.1998
शायर
बकुल देव
born.1980
फ़ाख़िरा बतूल
बिमल कृष्ण अश्क
1924 - 1982
बाल मुकुंद बेसब्र
1812/13 - 1885
बूम मेरठी
1888 - 1954
बू अली शाह क़लंदर
1804 - 1880
लेखक
बाल स्वरुप राही
born.1936
बू अली शाह क़लन्दर
1209 - 1324
मुअज़्ज़मा नक़वी
अरुण कोलटकर
1932 - 2004
रेनू बहल
born.1958
बोल सम्राट पुर्नादास
बाल गंगा धर तिलक जी महाराज
बाल कृष्ण
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरेबोल ज़बाँ अब तक तेरी है
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े सेमैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता
जिस की साँसों से महकते थे दर-ओ-बाम तिरेऐ मकाँ बोल कहाँ अब वो मकीं रहता है
नूर की ज़बाँ बन करहाथ बोल उठते हैं सुब्ह की अज़ाँ बन कर
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैंये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं
फ़िल्म और अदब में हमेशा से एक गहरा तअल्लुक़ रहा है ,अगर बात हिन्दुस्तानी फ़िल्मों की हो तो उनमें इस्तिमाल होने वाली ज़बान, डायलॉगज़ , स्क्रीन राईटिंग और नग़मो में उर्दू का हमेशा से बोल-बाला रहा है जो अब तक जारी है। आज इस कलेक्शन में हमने राजा मेहदी ख़ान के कुछ मशहूर नग़्मों को शामिल किया है । पढ़िए और क्लासिकल गानों का लुत्फ़ लीजिए।
नए साल की आमद को लोग एक जश्न के तौर पर मनाते हैं। ये एक साल को अलविदा कह कर दूसरे साल को इस्तिक़बाल करने का मौक़ा होता है। ये ज़िंदगी के गुज़रने और फ़ना की तरफ़ बढ़ने के एहसास को भूल कर एक लमहाती सरशारी में महवे हो जाता है। नए साल की आमद से वाबस्ता और भी कई फ़िक्री और जज़्बाती रवय्ये हैं, हमारा ये इंतिख़ाब इन सब पर मुश्तमिल है।
पाब्लो नेरूदा ने ठीक ही कहा है, प्यार मुख़्तसर होता है, और भूलना बहुत तवील। उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह से प्रेरित होकर, हम आपके लिए पेश करते हैं प्रेम, उसकी सुंदरता, उसके दुखों और निराशाओं के बारे में ये चुनिंदा गीत।
बोलبول
talk, say
मूत्र, प्रस्राव, पेशाब, मूत ।
Arabi Bol Chal
मोहम्मद अमीन
भाषा विज्ञान
Meethe Bol Mein Jadu Hai
डेल कार्नेगी
अनुवाद
Saraiki, Urdu, Angrezi Bol Chal
आसिमा ज़ुहूर
संकलन
Farsi Bolchal
मोहम्मद उबैदुल्लाह
शब्द-कोश
सुरीले बोल
अज़मतुल्लाह ख़ाँ
नज़्म
अबदुर्रहमान अमृतसरी
भाषा
Sharh-e-Bal-e-Jibreel
ख़्वाजा हमीद यज़दानी
व्याख्या
Bal-e-Jibreel
यूसुफ़ सलीम चिश्ती
अल्लामा इक़बाल
शायरी
Baqaul-e-Zar Dusht
फ्रेडरिक नीत्शे
दर्शन / फ़िलॉसफ़ी
Kulliyat-e-Nabz Wa Bol-o-Baraz
सय्यद हबीबुर्रहमान
औषधि
Baqaul-e-Zardusht
मीर की कविता और भारतीय सौन्दर्यबोध
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
शायरी तन्क़ीद
Kachche Bol
ज्ञान चंद जैन
काव्य संग्रह
Turki Bol Chaal
महबूब आलम
शाइ'र भी जो मीठी बानी बोल के मन को हरते हैंबंजारे जो ऊँचे दामों जी के सौदे करते हैं
कैसे हो सकता है जो कुछ भी मैं चाहूँबोल ना मेरे यारा कैसे हो सकता है
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझेरौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा
बोल पड़ते हैं हम जो आगे सेप्यार बढ़ता है इस रवय्ये से
कुछ ख़्वाब सजल मुस्कानों केकुछ बोल कबत दीवानों के
ख़ुद को पत्थर सा बना रक्खा है कुछ लोगों नेबोल सकते हैं मगर बात ही कब करते हैं
अब शौक़ से कि जाँ से गुज़र जाना चाहिएबोल ऐ हवा-ए-शहर किधर जाना चाहिए
जब लहू बोल पड़े उस के गवाहों के ख़िलाफ़क़ाज़ी-ए-शहर कुछ इस बाब में इरशाद करे
वो और तेज़ी से बढ़ा, जैसे ज़ख़्मी शेर... एक और फ़ायर हुआ। वो लड़खड़ाया मगर एक दम क़दम मज़बूत करके वो घुड़ सवार गोरे पर लपका और चश्म ज़दन में जाने क्या हुआ... घोड़े की पीठ ख़ाली थी। गोरा ज़मीन पर था और थैला उसके ऊपर... दूसरे गोरे ने जो...
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