aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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और अगर वो उससे ज़रूरत से ज़्यादा छेड़छाड़ करते तो वो उनको अपनी ज़बान में गालियां देना शुरू करदेती थी। वो हैरत में उसके मुँह की तरफ़ देखते तो वो उनसे कहती, “साहिब, तुम एक दम उल्लु का पट्ठा है। हरामज़ादा है... समझा।” ये कहते वक़्त वो अपने लहजे में...
ये वार कर गया है पहलू से कौन मुझ परथा मैं ही दाएँ बाएँ और मैं ही दरमियाँ था
ये बच्चों के तन्नूर क्यूँकर भरेंगेहसन ऐ मोहब्बत के मारे
वो बुर्क़ा पहने हुए थी, मगर नक़ाब उठा हुआ था। उसके हाथ में दवा की बोतल थी और वो जनरल वार्ड के बरामदे में एक छोटे से लड़के के साथ चली आ रही थी। मैं ने उसकी तरफ़ देखा तो उसकी आँखों में जो बड़ी थीं, न छोटी, स्याह थीं...
समझो न भवें बस क़ि हवा का जो गुज़र हैये शम्मा की लौ गाह इधर गाह इधर है
भईंبھئیں
in/ at, brother ( Shortened version of brother)
Aain Bain Shain
शाहिद अदीली
शायरी
Communism Mein Bayen Bazu Ki Tiflana Bimari
व्लादिमीर लेनिन
दर्शन / फ़िलॉसफ़ी
Baayen Hath Ka Khel (Haiku)
हनीफ़ कैफ़ी
हाइकु
Jeeteg Bhayi Jeetega
आज़म तारिक़ कोहिस्तानी
विज्ञान
Sanjh Bhaee Choudes
सय्यद शकील दस्नवी
काव्य संग्रह
Maghribi Bengal Me.n Bayen Mahaz Hukumat Ke Nau Sal
राजनीतिक
Sanjh Bhaii Chaudes
साहिर लखनऊवी
नज़्म
सांझ भयी चहु देस
मसनवी
Maghribi Bengal Mein Bayen Mahaz Hukumat
शोबा-ए-इत्तिलाआत-ओ-सक़ाफ़ती उमूर, हुकूमत-ए-मग़रिबी बंगाल
Sanjh Bhayi Chaudes
कहार बहुत देर तक मिर्ज़ा नौशा को उठाए फिरते रहे, जिस बाज़ा से भी गुज़रते वो सुनसान था, चौदहवीं का चांद डूबने के लिए नीचे झुक गया था। उसकी रोशनी उदास हो गई थी।एक बहुत ही सुनसान बाज़ार से हवादार गुज़र रहा था कि दूर से सारंगी की आवाज़ आई।...
इस क़दर टूट के तुम पे हमें प्यार आता हैअपनी बाँहों में भरें मार ही डालें तुम को
“ए है बी, घास तो नहीं खा गई हो, कनीज़ फ़ातिमा की सास ने सुन लिया तो नाक चोटी काट कर हथेली पर रख देंगी। जवान बेटे की मय्यत उठते ही वो बहू के गिर्द कुंडल डाल कर बैठ गई। वो दिन और आज का दिन दहलीज़ से क़दम न...
बात ये भी थी कि बेगम जान को खुजली का मर्ज़ था। बेचारी को ऐसी खुजली होती थी और हज़ारों तेल और उबटन मले जाते थे मगर खुजली थी कि क़ायम। डाक्टर हकीम कहते कुछ भी नहीं। जिस्म साफ़ चट पड़ा है। हाँ कोई जिल्द अंदर बीमारी हो तो ख़ैर।...
महाराजा जब कुछ फ़िल्म दिखा चुका तो उसने कैमरे में रोशनी की और बड़ी बेतकल्लुफ़ी से अशोक की रान पर धप्पा मार कर कहा,“और सुनाओ दोस्त।” अशोक ने सिगरेट सुलगाया, “मज़ा आगया फ़िल्म देख कर।”...
मुन्नी ने कहा, “गाली क्यों देगा? क्या उसका राज है?” मगर यह कहने के साथ ही उसकी तनी हुई भवें ढ़ीली पड़ गईं। हल्कू की बात में जो दिल दहलाने देने वाली सदाक़त थी। मालूम होता था कि वो उसकी जानिब टकटकी बाँधे देख रही थी। उसने ताक़ पर से...
जो दाएँ बाएँ भी हैं और आगे पीछे भीउन्हें मैं अब भी तुम्हारे नहीं समझता हूँ
अभी बहुत सवेरा है दुकानें भी तो सबकी सब बंद हैं। इस ख़याल से उसे तस्कीन थी। इसके इलावा वो ये भी सोचता था, “हाईकोर्ट में नौ बजे के बाद ही काम शुरू होता है। अब इससे पहले नए क़ानून का क्या नज़र आएगा?” जब उसका ताँगा गर्वनमेंट कॉलिज के...
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैंकिसी से आज बिगड़ी है कि वो यूँ बन के बैठे हैं
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