aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "بھائی"
मुन्नू भाई
लेखक
मिरा बाई
बेगम अख़्तर
1929 - 1974
कलाकार
मुन्नी बाई हिजाब
born.1860
शायर
यहया भाई
भाई निहाल सिंह
शाह अब्दुल लतीफ भिटाई
भाई वीर सिंह
ली बाई
भाई परमानंद जी
पट्टा भाई सीता रामिया
कीका भाई
भाई शिव प्रशाद
दीनू भाई पंत
भाई अजीत सिंघ
अनुवादक
दरिंदों चरिन्दों पे क़ाबू दियातुझे भाई दे कर के बाज़ू दिया
उसकी एक लड़की थी जो हर महीने एक उंगली बढ़ती-बढ़ती पंद्रह बरसों में जवान हो गई थी। बिशन सिंह उसको पहचानता ही नहीं था। वो बच्ची थी जब भी अपने बाप को देख कर रोती थी, जवान हुई तब भी उसकी आँखों से आँसू बहते थे। पाकिस्तान और हिंदोस्तान का...
मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठेमिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले
ऐ भाई नहीं ऐ भाई नहींये बात समझ में आई नहीं
उन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई बरनाई भीमाओं के जवाँ बेटे भी गए बहनों के चहेते भाई भी
मिज़ाहिया शायरी बयकवक़्त कई डाइमेंशन रखती है, इस में हंसने हंसाने और ज़िंदगी की तल्ख़ियों को क़हक़हे में उड़ाने की सकत भी होती है और मज़ाह के पहलू में ज़िंदगी की ना-हमवारियों और इन्सानों के ग़लत रवय्यों पर तंज़ करने का मौक़ा भी। तंज़ और मिज़ाह के पैराए में एक तख़्लीक़-कार वो सब कह जाता है जिसके इज़हार की आम ज़िंदगी में तवक़्क़ो भी नहीं की जा सकती। ये शायरी पढ़िए और ज़िंदगी के इन दिल-चस्प इलाक़ों की सैर कीजिए।
दशहरे का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न है। इस त्योहार का जश्न चुनिंदा उर्दू शायरी के साथ मनाइए।
कृष्ण का काव्यात्मक रूप समय-समय पर कई कवियों को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ | इनमें सूरदास, मीराबाई और विद्यापति अहम् नामों में हैं | शायरी की इस परम्परा को उर्दू शायरों ने भी बख़ूबी निभाया है | मिसाल के तौर पर यहाँ चुनिन्दा उर्दू नज़्में दी जा रही हैं |
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brother
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जे. एस. फ्लेचर
नॉवेल / उपन्यास
दो भाई
प्रेमचंद
कहानी
Deen Ke Do Bhai
सय्यद मनाज़िर अहसन गीलानी
Red Cross ki Kahani
कृषणा सत्तया नन्द
Lal Qila Ka Tareekhi Muqadma
मिस्टर भोला भाई देसाई
भारत का इतिहास
ग़ज़लियात भाई नन्दन लाल गोया
सय्यद आबिद हुसैन
Kashmeer Ke Do Adeeb Do Bhai
अब्दुल क़ादिर सरवरी
भाई हसन जो आप की गोदी में आएँ गेहम तुम से नाना जान अभी रूठ जाएँ गे
ये 1919 ई. की बात है भाई जान, जब रूल्ट ऐक्ट के ख़िलाफ़ सारे पंजाब में एजिटेशन हो रही थी। मैं अमृतसर की बात कर रहा हूँ। सर माईकल ओडवायर ने डिफ़ेंस आफ़ इंडिया रूल्ज़ के मातहत गांधी जी का दाख़िला पंजाब में बंद कर दिया था। वो इधर आ...
और मादर ज़ैनब की है लौंडी मिरी मादरभाई मिरा इक ऊन दो अब्दुल्लाह ओ जाफ़र
उसने हंसकर कहा। “अब रात हो गई है, बड़ी अच्छी रात है।” उसने अपना कमज़ोर नन्हा छोटा सा हाथ मेरे दूसरे शाने पर रख दिया और जैसे बादाम के फूलों से भरी शाख़ झुक कर मेरे कंधे पर सो गई।...
याद उसे इंतिहाई करते हैंसो हम उस की बुराई करते हैं
मगर इम्तियाज़ी फुफ्फो भी इन पाँच पांडवों पर सौ कौरवों से भारी पड़तीं। उनका सबसे ख़तरनाक हर्बा उनकी चिनचिनाती हुई बरमे की नोक जैसी आवाज़ थी। बोलना जो शुरू' करतीं तो ऐसा लगता जैसे मशीनगन की गोलियाँ एक कान से घुसती हैं और दूसरे कान से ज़न से निकल जाती...
जब मैंने बेगम जान को देखा तो वो चालीस-बयालिस की होंगी। उफ़, किस शान से वो मसनद पर नीम दराज़ थीं और रब्बो उनकी पीठ से लगी कमर दबा रही थी। एक ऊदे रंग का दोशाला उनके पैरों पर पड़ा था और वो महारानियों की तरह शानदार मालूम हो रही...
एक जवान ने गूंजती हुई आवाज़ों से मुख़ातिब हो कर ये बड़ी गाली दी और रब नवाज़ से कहा, “सूबेदार साहब गालियां दे रहे हैं। अपनी माँ के यार।” रब नवाज़ ये गालियां सुन रहा था जो बहुत उकसाने वाली थीं। उसके जी में आई कि बज़न बोल दे मगर...
अशोक कुछ सिकुड़ सा गया था। एक दम रोशनी के बाइस उसकी आँखें भींची हुई थीं। माथे पर पसीने के मोटे मोटे क़तरे थे। महाराजा ग ने ज़ोर से उसकी रान पर धप्पा मारा। और इस क़दर बेतहाशा हंसा कि उसकी आँखों में आँसू आगए। अशोक सोफे पर से उठा।...
اس طرف لشکرِ اعدا میں صف آرائی ہےیاں نہ بیٹا نہ بھتیجا نہ کوئی بھائی ہے
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