aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "جلائے_گا"
पहले ख़ुद को जलाएगा सूरजफिर कहीं जगमगाएगा सूरज
मिरे मज़ार पे आ कर दिए जलाएगावो मेरे ब'अद मिरी ज़िंदगी में आएगा
जी जलाएगा ये आवारा ओ बे-दर होनादिल दुखाएँगे ये महके हुए घर अब के बरस
आँधियों में दिए जलाने सेराहबर राह भूल जाएगा
महशर एक मज़हबी इस्तिलाह है ये तसव्वुर उस दिन के लिए इस्तेमाल होता है जब दुनिया फ़ना हो जाएगीगी और इन्सानों से उनके आमाल का हिसाब लिया जाएगा। मज़हबी रिवायात के मुताबिक़ ये एक सख़्त दिन होगा। एक हंगामा बर्पा होगा। लोग एक दूसरे से भाग रहे होंगे सबको अपनी अपनी पड़ी होगी। महशर का शेरी इस्तेमाल उस के इस मज़हबी सियाक़ में भी हुआ है और साथ ही माशूक़ के जल्वे से बर्पा होने वाले हंगामे के लिए भी। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
तोहफ़े पर ये शेरी इन्तिख़ाब आप के लिए हमारी तरफ़ से एक तोहफ़ा ही है। आप उसे पढ़िए और आम कीजिए। आम ज़िंदगी में तोहफ़े लेने और देने से रिश्ते पर्वान चढ़ते हैं, तअल्लुक़ात मज़बूत होते हैं और नए जज़्बों की आबियारी होती है। लेकिन आशिक़ और माशूक़ के दर्मियान तोहफ़े लेने और देने की सूरतों ही कुछ और हैं। हमारा ये शेरी इन्तिख़ाब आपको और भी कई दिल-चस्प जहतों तक ले जाएगा।
महबूब से विसाल की आरज़ू तो आप सबने पाल रक्खी होगी लेकिन वो आरज़ू ही क्या जो पूरी हो जाए। शायरी में भी आप देखेंगे कि बेचारा आशिक़ उम्र-भर विसाल की एक नाकाम ख़्वाहिश में ही जीता रहता है। यहाँ हमने कुछ ऐसे अशआर जमा किए हैं जो हिज्र-ओ-विसाल की इस दिल-चस्प कहानी को सिलसिला-वार बयान करते हैं। इस कहानी में कुछ ऐसे मोड़ भी हैं जो आपको हैरान कर देंगे।
जलाएगाجلائے گا
will burn
Sheesha Toot Jaiga
मक़सूद इलाही शैख़
Sheesha Toot Jayega
सादिक़ैन जी से भुलाया न जाएगा
अम्बरीन अब्बास
महिलाओं की रचनाएँ
नॉवेल / उपन्यास
Dekha Jayega
मिर्ज़ा अज़ीम बेग़ चुग़ताई
उपन्यासिका
Sheesha Toot Jaega
जी. आर. कँवल
काव्य संग्रह
ज़िन्दगी मेरे पैरों से लिपट जाएगी
तनवीर अंजुम
कविता
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशनख़ून उस का दिए जलाएगा
सती शम्अ' परवाने के साथ होगीजलाएगा उस को जलाना हमारा
शो'ला-ए-इश्क़ क्या ख़बर 'पैकाँमेरे दिल को जलाएगा कब तक
अजनबी मुसाफ़िर को रास्ता दिखाएगाकौन अपनी चौखट पर अब दिया जलाएगा
कोई जलाएगा क्या सोख़्ता-नसीबों कोकि राख आग पकडती नहीं जलाने से
आख़िर ज़माना उन को सताएगा कब तलककब से जला रहा है जलाएगा कब तलक
'ताहिर-अदीम' अपना दिया क्या जलाएगाजिस ने मिरा चराग़ भी जलने नहीं दिया
जो ख़ुद उदास हो वो क्या ख़ुशी लुटाएगाबुझे दिये से दिया किस तरह जलाएगा
उम्मीद-ए-सहर भी तो विरासत में है शामिलशायद कि दिया अब के जलाएगा कोई और
रात के अँधेरों को रौशनी वो क्या देगाइक दिया जलाएगा सौ दिए बुझा देगा
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