aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ربڑ"
रब नवाज़ माइल
शायर
रमण शाडियल्य
लेखक
क़ाज़ी फ़ज़्ल-ए-रब
born.1924
फ़ज़ल-ए-रब अर्शी तजपुरी
सय्यद अमानत हुसैन रब्त तिलहरी
रब नवाज़ मलिक
संपादक
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों सेसो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं
नमाज़ ख़त्म हो गई है, लोग बाहम गले मिल रहे हैं। कुछ लोग मोहताजों और साइलों को ख़ैरात कर रहे हैं। जो आज यहाँ हज़ारों जमा हो गए हैं। हमारे दहक़ानों ने मिठाई और खिलौनों की दुकानों पर यूरिश की। बूढ़े भी इन दिलचस्पियों में बच्चों से कम नहीं हैं।...
“कहाँ का लूं, कहाँ का न लूं। तुम तो अजब मख़मसे में डाल देती हो। यहां का नाप लेना शुरू किया था तो तुमने कहा ज़रा और नीचे कर लो... ज़रा छोटा बड़ा हो गया तो कौन सी आफ़त आ जाएगी।” “भई वाह... चीज़ के फ़िट होने में तो सारी...
वो जब स्कूल की तरफ़ रवाना हुआ तो उसने रास्ते में एक क़साई देखा, जिसके सर पर एक बहुत बड़ा टोकरा था। उस टोकरे में दो ताज़ा ज़बह किए हुए बकरे थे खालें उतरी हुई थीं, और उनके नंगे गोश्त में से धुआँ उठ रहा था। जगह जगह पर ये...
“पानी नहीं, औरत!” ये कह कर ज्ञान नीम अंधेरे कोरिडोर में दाख़िल हुआ, उसके पीछे एक छोटे से क़द की लड़की थी। ज्ञान को फ़र्श पर फैले हुए पानी का कुछ एहसास न हुआ। लड़की ने पायजामा ऊपर उठा लिया और छोटे छोटे क़दम उठाती ज्ञान के पीछे चली गई।...
ऐसे अशआर का मजमूआ जिस में शायर ऐसे दो शेर कहे जिनका एक अर्थ निकलता है। जिसमे दूसरे शेर का अर्थ पहले शेर के अर्थ पर आधारित हो। ऐसे दो शेरो को हम क़िता कहते हैं। अगर एक ग़ज़ल में एक से ज़ियादा क़त'आत का इस्तिमाल हुआ हो तो उस ग़ज़ल को क़िता-बन्द ग़ज़ल कहते हैं।
पेश हैं कुछ ऐसी ग़ज़लें, जो हर उस शख़्स को पसंद आएँगी जिसका अपने अतीत से गहरा नाता है।
रबड़ربڑ
rubber
इंतिख़ाब-ए तिलिस्म-ए होशरुबा
मोहम्मद हसन असकरी
दास्तान
Baqiya-e Tilism-e Hoshruba
मुंशी अहमद हुसैन क़मर
तिलिस्म-ए होशरुबा
मुकद्दमा-ए तिलिस्म-ए होशरुबा
आबिद रज़ा बेदार
दास्तान तन्क़ीद
बक़िया-ए तिलिस्म-ए होशरुबा
Farhang-e-Tilism-e-Hoshruba
अकबर हुसैनी क़ुरैशी
शब्द-कोश
तिलिस्म-ए-होशरुबा
शैख़ अबुल फ़ज़ल अल्लामी
सैकड़ों ऐसी दुकानें हैं जहाँ मिल जाएँगीधात की पत्थर की शीशे की रबड़ की औरतें
मैं ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा। उसने तेज़ी से कहा, “आप क्यों हंस रहे हैं?”...
لطیف بے حد خام تھا،گفتگو کرنے کا سلیقہ تک اسے نہیں آتا تھا۔ کسی شے میں خوبصورتی تلاش کرنے کے لیے اگر اس سے کہا جاتا تو وہ فرطِ حیرت سے بالکل بیو قوف دکھائی دیتا،اس کے اندر وہ بات ہی پیدا نہیں ہوئی تھی جو ایک آرٹسٹ میں پیدا...
आज भी छोटे कस्बों में कसरत से ऐसे ख़ुश अक़ीदा हज़रात मिल जाऐंगे जिनका ईमान है कि मुर्ग़ बाँग न दे तो पौ नहीं फटती, लिहाज़ा किफ़ायत शिआर लोग अलार्म वाली टाइम पीस ख़रीदने के बजाय मुर्ग़ पाल लेते हैं ताकि हमसायों को सह्र ख़ेज़ी की आदत रहे। बा’ज़ों के...
वज़न हुस्न का दुश्मन है (याद रखिए राय के इलावा हर वज़नी चीज़ घटिया होती है) इसीलिए हर समझदार औरत की ये ख़्वाहिश होती है कि अपनी चर्बी की दबीज़ तहों के खोल को साँप की केंचुली की तरह उतार कर अपनी अज़ीज़ सहेलियों को पहना दे। अक़द-ए-नागहानी के बाद...
बच्चे की ज़िंदगी का शायद ही कोई लम्हा ऐसा गुज़रता हो जब उसके लिए किसी न किसी क़िस्म का शोर ज़रूरी न हो। अक्सर औक़ात तो वो ख़ुद ही सामेआ’ नवाज़ी करते रहते हैं वर्ना ये फ़र्ज़ उनके लवाहिक़ीन पर आ’इद होता है। उनको सुलाना हो तो लोरी दीजिए। हँसाना...
वहां से उसने ज़ोर लगाकर उसका तबादला बम्बई करवा दिया। ये उस ज़माने की बात है जब दूसरी जंग शुरू हो चुकी थी। नटनी की जुदाई और डार्थी का बम्बई में मुस्तक़िल क़ियाम सोहान-ए-रूह बन गया। सक्खू बाई बच्चों की आया का हाथ बटाने के लिए रखी गई थी। मगर...
झोंपड़ों में रहना, तन आसानियों से परहेज़ करना, ख़ुदा की हम्द गाना, क़ौमी नारे मारना... ये सब ठीक है मगर ये क्या कि इंसान की उस हिस्स को जिसे तलब-ए-हुस्न कहते हैं आहिस्ता आहिस्ता मुर्दा कर दिया जाये। वो इंसान क्या जिसमें ख़ूबसूरत और हंगामों की तड़प न रहे। ऐसे...
मैगी पामेला को मिसिज़ ट्रेवरज़ के बोर्डिंग हाऊस से करीम काटिज में उठा लाई और उससे ऐसी मुहब्बत और शफ़क़त से पेश आने लगी जैसे पाम उसकी साठ बरस की सहेली न हो, कोई छोटी सी बच्ची हो। मैगी पाम के बाल बनाती, पाम के कपड़े निकालती, उसके कपड़ों पर...
फिर बुड्ढे अंकल ने जो दिन-भर बुख़ार में सुलग रहा था, यूं महसूस किया कि दीवार पर लगा हुआ बल्ब धीरे धीरे मद्धम हो कर बुझ गया और वो ख़ुद फ़र्श के नीचे डूबता चला गया...डूबता ही चला गया...फिर बहुत देर बाद वो फ़र्श की अथाह गहराइयों से उभरा तो...
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