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ग़ज़ल
वही साग़र वही सहबा वही मय-ख़्वार हैं साक़ी
निज़ाम-ए-नौ के क्या सच-मुच यही आसार हैं साक़ी
साबिर अबुहरी
ग़ज़ल
तिरे मयख़ाने में ऐसे बहुत मय-ख़्वार बैठे हैं
मय-ए-हस्ती जो पी कर साक़िया बेज़ार बैठे हैं
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
रुस्वा हो जो दुनिया में वो मय-ख़्वार हमीं हैं
सब आबिद-ओ-ज़ाहिद हैं गुनहगार हमीं हैं
शाइर फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें
नश्शे की डोरी नहीं पहनें हैं ज़ुन्नार आँखें
हातिम अली मेहर
ग़ज़ल
ब-ख़ुदा हैं तिरी हिन्दू बुत-ए-मय-ख़्वार आँखें
नश्शे की डोरी नहीं पहने हैं ज़ुन्नार आँखें
हातिम अली मेहर
शेर
ज़ाहिद का दिल न ख़ातिर-ए-मय-ख़्वार तोड़िए
सौ बार तो ये कीजिए सौ बार तोड़िए
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
क़ितआ
मय-ख़्वार हूँ मैं वुसअत-ए-मय-ख़ाना दिल में है
साग़र है किस शुमार में ख़ुम किस हिसाब में
नवा लखनवी
ग़ज़ल
तिरा मय-ख़्वार ख़ुश-आग़ाज़-ओ-ख़ुश-अंजाम है साक़ी
कि दिल में याद तेरी लब पे तेरा नाम है साक़ी
ग़ुबार भट्टी
अप्रचलित ग़ज़लें
کب فقیروں کو رسائی بت مے خوار کے پاس
تو بتے بو دیجیے میخانے کی دیوار کے پاس