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ग़ज़ल
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
सुकूँ उन को नहीं मिलता कभी परदेस जा कर भी
जिन्हें अपने वतन से दिल लगा कर कुछ नहिं मिलता
वसी शाह
शेर
तेरी क़ुर्बत में ये परदेस से आया हुआ शख़्स
छोड़ कर तुझ को कहीं और भी जा सकता है