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नज़्म
सुब्ह-ए-आज़ादी (अगस्त-47)
अभी गिरानी-ए-शब में कमी नहीं आई
नजात-ए-दीदा-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
नज़्म
चंद रोज़ और मिरी जान
हर घड़ी दर्द के पैवंद लगे जाते हैं
लेकिन अब ज़ुल्म की मीआद के दिन थोड़े हैं