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ग़ज़ल
थी न क्या क्या हवस-ए-सैर-ओ-तमाशा 'ताबाँ'
रास्ते पाँव की ज़ंजीरें बना क्या करते
ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ग़ज़ल
जब आई ख़िज़ाँ हम को कहा ''बाग़ चलो हो''
पूछा न कभी सैर ओ तमाशा के दिनों में
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
खो न जा इस सहर ओ शाम में ऐ साहिब-ए-होश
इक जहाँ और भी है जिस में न फ़र्दा है न दोश