aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "खाएँगे"
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हों मुमकिन हैहम तो उस दिन राय देंगे जिस दिन धोका खाएँगे
रो रो के आज जान हम अपनी गंवाएँगेपानी न अब पिएँगे न खाने को खाएँगे
बताऊँ आप को मरने के बाद क्या होगापोलाओ खाएँगे अहबाब फ़ातिहा होगा
बम्बई में ठहरेंगे कहाँदिल्ली में क्या खाएँगे
मोहसिन, “लेकिन जी में कह रहे होगे कि कुछ मिल जाए तो खा लें। अपने पैसे क्यूँ नहीं निकालते?” महमूद, “इसकी होशियारी मैं समझता हूँ। जब हमारे सारे पैसे ख़र्च हो जाएँगे, तब ये मिठाई लेगा और हमें चिढ़ा-चिढ़ा कर खाएगा।”...
खाएँगेکھائیں گے
will eat
अब सद्र-ए-बलदिया तक़रीर करने उठे। गो क़द ठिगना और हाथ-पाँव छोटे-छोटे थे मगर सर बड़ा था। जिसकी वज्ह से बुर्द-बार आदमी मा’लूम होते थे। लहजे में हद दर्जा मतानत थी, बोले, “हज़रात! मैं इस अम्र में क़तई तौर पर आप से मुत्तफ़िक़ हूँ कि इस तबक़े का वुजूद हमारे शह्र...
चिरंजी जवाब देता है, “तुम्हारी माँ को ये ज़ेवर पसंद नहीं था।” ये कह कर वो उठता है और बीमारों की तरह क़दम उठाता बाहर चला जाता है। उसकी लड़की उससे पूछती है, “खाना नहीं खाएंगे आप?”...
हमने ये माना कि दिल्ली में रहें खाएँगे क्या अफ़सोस के सारे दीवान में ये कहीं वज़ाहत नहीं की गई कि ग़म-ए-उलफ़त बादशाह के तोशा ख़ाना में मौजूद था या वहां भी झाड़ू फिर गई थी। नीज़ ये कि राशन की दुकानों पर किस भाव बिकता था। अलबत्ता ये साफ़...
वो ज़हीन लड़की होगी। उसके दिल में अपने मुल्क-ओ-क़ौम की ख़िदमत के इरादे होंगे। उसकी रूह में किसी से मुहब्बत करने, किसी को चाहने, किसी को गले लग जाने, किसी बच्चे को दूध पिलाने का जज़्बा होगा। वो लड़की थी, वो माँ थी, वो बीवी थी, वो महबूबा थी। वो...
खाना तैयार हो गया। आँगन में पत्तल पड़ गए। मेहमान खाने लगे । औरतों ने ज्योनार गाना शुरू किया। मेहमानों के नाई और ख़िदमतगार भी इस जमात के साथ पर ज़रा हट कर खाने बैठे हुए थे लेकिन आदाब-ए-मजलिस के मुताबिक़ जब तक सब के सब खा ना चुकें कोई...
ग़ालिब जज़ाक अल्लाह और ये इस ग़ालिब की इज़्ज़त-अफ़ज़ाई की गई है जिसे सारी उम्र ये शिकायत रही, हमने माना कि दिल्ली में रहें खाएँगे क्या...
उन्हीं के गीत ज़माने में गाए जाएँगेजो चोट खाएँगे और मुस्कुराए जाएँगे
महेश नाथ के यहाँ अब के भंगन की ख़ूब ख़ातिर की गई। सुब्ह को हरीरा मिलता, दोपहर को पूरियाँ और हलवा। तीसरे पहर को फिर और रात को फिर और गोडर को भी भरपूर परसा मिलता था। भंगन अपने बच्चे को दिन-भर में दोबार से ज़्यादा दूध ना पिला सकती।...
किस को समझाएँ उसे खोदें तो फिर पाएँगे क्याहम अगर रिश्वत नहीं लेंगे तो फिर खाएँगे क्या
बोले, “भई आप तो क़दम क़दम पर उलझते हैं। क़ुनूती से ऐसा शख़्स मुराद है जिसका ये अक़ीदा हो कि अल्लाह तआला ने आँखें रोने के लिए बनाई हैं। ख़ैर, इसको जाने दीजिए। मतलब ये है कि इस हिसाब से पहले साल में डेढ़ हज़ार अंडे होंगे और दूसरे साल...
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