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नज़्म
ख़िराज-अक़ीदत
इक नया पैग़ंबर-ए-अम्न-ओ-अमाँ पैदा हुआ
कारवाँ में इक अमीर-ए-कारवाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
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ग़ज़ल
अदू-ए-दीन-ओ-ईमाँ दुश्मन-ए-अम्न-ओ-अमाँ निकले
तिरे पैकाँ बड़े जाबिर बड़े ना-मेहरबाँ निकले
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
अम्न-ओ-अमाँ की ख़ातिर खाई थीं हम ने क़स्में
लेकिन रहा नहीं है ये काम अपने बस में
उद्धव महाजन बिस्मिल
ग़ज़ल
जो हुस्न-ओ-इश्क़ से अम्न-ओ-अमाँ में रहते हैं
कहाँ के लोग हैं वो किस जहाँ में रहते हैं
सफ़ी औरंगाबादी
नज़्म
गाँधी जी
हर एक फूल को अपने लहू का रंग दिया
बहार-ए-गुलशन-ए-अम्न-ओ-अमाँ थे गाँधी जी