aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "तर्क-ए-मरासिम"
किया न तर्क-ए-मरासिम पे एहतिजाज उस नेकि जैसे गुज़रे किसी मंज़िल-ए-नजात से वो
इक आदमी से तर्क-ए-मरासिम के बा'द अबक्या उस गली से कोई गुज़रना भी छोड़ दे
कोई तो तर्क-ए-मरासिम पे वास्ता रह जाएवो हम-नवा न रहे सूरत-आश्ना रह जाए
एक बारतर्क-ए-मरासिम के बावजूद
ये दाग़-ए-तर्क-ए-मरासिम न दीजिए हम कोजिगर के दाग़ मिटाने में देर लगती है
मलाल-ए-तर्क-ए-मरासिम तो कुछ नहीं लेकिनइस एहतियात-ए-मोहब्बत की दाद देता हूँ
आईना-ए-वहशत को जिला जिस से मिली हैवो गर्द रह-ए-तर्क-ए-मरासिम से उठी है
धूप में तर्क-ए-मरासिम की झुलसने वालेआख़िरी शाम-ए-मुलाक़ात अभी बाक़ी है
उस का इशारा तर्क-ए-मरासिम का था 'सलीम'रुख़्सत के वक़्त आँख झुकानी पड़ी मुझे
तिरे आने से आया कौन सा ऐसा तग़य्युरफ़क़त तर्क-ए-मरासिम का मुदावा हो गया है
तमाम तर्क-ए-मरासिम के बावजूद 'अश्फ़ाक़'वो ज़ेर-ए-लब ही सही गुनगुना रहा था मुझे
अज़ीज़ जान खुली खिड़कियों की ख़ुश्बू कोगली से तर्क-ए-मरासिम सही घरों से न रूठ
हो गया तर्क-ए-मरासिम को ज़माना लेकिनआज तक दिल तिरी नज़रों को दुआ देता है
ख़ैर अच्छा हुआ बस तर्क-ए-मरासिम ठहरावर्ना ये 'इश्क़ भी एहसास-ए-ज़ियाँ होना था
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