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ग़ज़ल
ब-क़द्र-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद आस्ताँ नहीं मिलता
ज़मीं मिले तो मिले आसमाँ नहीं मिलता
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
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शेर
यहाँ कोताही-ए-ज़ौक़-ए-अमल है ख़ुद गिरफ़्तारी
जहाँ बाज़ू सिमटते हैं वहीं सय्याद होता है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
हाए इस मजबूरी-ए-ज़ौक़-ए-नज़र को क्या करूँ
वो मुझे देखें न देखें मैं उन्हें देखा करूँ
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
सर-ए-नियाज़ झुका है ज़े-राह-ए-ज़ौक़-ए-सुजूद
तिरे करम की क़सम कोई मुद्दआ तो नहीं
सय्यद आशूर काज़मी
ग़ज़ल
थक गए तुम हसरत-ए-ज़ौक़-ए-शहादत कम नहीं
मुझ से दम ले लो अगर तेग़-ए-सितम में दम नहीं
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
ख़ाक-दाँ को हासिल-ए-ज़ौक़-ए-नज़र समझा था मैं
ख़्वाब के आलम को कितना मो'तबर समझा था मैं
सय्यद मेराज जामी
ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा
या'नी ये पर्दा तो उठ सकता है आसानी के साथ