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नज़्म
आज बाज़ार में पा-ब-जौलाँ चलो
चश्म-ए-नम जान-ए-शोरीदा काफ़ी नहीं
तोहमत-ए-इश्क़-ए-पोशीदा काफ़ी नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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ग़ज़ल
नाला है ख़ाना-ज़ाद-ए-इश्क़ लेक कहाँ सर-ओ-दिमाग़
अपने तो क़ाफ़िले के बीच जो है जरस ख़मोश है
इश्क़ औरंगाबादी
शेर
ऐ मुक़ल्लिद बुल-हवस हम से न कर दावा-ए-इश्क़
दाग़ लाला की तरह रखते हैं मादर-ज़ाद हम
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
झुका कर एक मैं सर नाम अपना कर दिया रौशन
फ़ुनून-ए-इश्क़ में कम कोई परवाना सा पक्का है
इश्क़ औरंगाबादी
ग़ज़ल
इश्क़ अहल-ए-वफ़ा बीच उसे क़द्र है क्या ख़ाक
वो दिल कि जो गर्द-ए-रह-ए-दिलदार न होवे