aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "धमकी"
मगर ये अनोखी निदा जिस पे गहरी थकन छा रही हैये हर इक सदा को मिटाने की धमकी दिए जा रही है
धमकी में मर गया जो न बाब-ए-नबर्द थाइश्क़-ए-नबर्द-पेशा तलबगार-ए-मर्द था
कभी दोनों हथेलियाँ ज़ोर से ज़मीन पर मारते और सर ऊपर उठा कर अंगुश्त-ए-शहादत फ़िज़ा में यूँ हिलाते। जैसे कोई उनके सामने खड़ा हो और उस से कह रहे हों देख लो, सोच लो मैं तुम्हें मैं तुम्हें बता रहा हूँ सुना रहा हूँ न यक धमकी दिए जाते थे। फिर तड़प कर ठीकरियों पर गिरते और जफ़ाकुम कुन जफ़ाकुम कुन कहते हुए रोने लगते। थोड़ी देर में साकित-व-जामिद खड़ा रहा और फिर ज़ोर से...
वो चाहते थे कि ज़ुहरा नईम को छोड़ दे और जो कुछ हो चुका है उसे भूल जाये। वो नईम को दो-तीन हज़ार रुपया देने के लिए भी तैयार थे। मगर उन्हें नाकाम लौटना पड़ा। इसलिए कि ज़ुहरा नईम को किसी क़ीमत पर भी छोड़ने के लिए तैयार न हुई। उसने अपने बाप से कहा, “अब्बा जी! मैं नईम के साथ बहुत ख़ुश हूँ। आप इससे अच्छा शौहर मेरे लिए कभी तलाश नहीं कर सकते। मैं और वो आप से कुछ...
नसीर दाया के पीछे पीछे दरवाज़े तक आया। लेकिन जब दाया ने दरवाज़ा बाहर से बंद कर दिया तो मचल कर ज़मीन पर लेट गया। और अन्ना अन्ना कह कर रोने लगा। शाकिरा ने चुमकारा। प्यार किया, गोद में लेने की कोशिश की। मिठाई का लालच दिया। मेला दिखाने का वअ’दा किया। उससे काम न चला तो बंदर और सिपाही और लोलो और हवा की धमकी दी। पर नसीर पर मुतलक़ असर न हुआ। यहाँ तक की शाकिर...
धमकीدھمکی
threat, warning
धमक
अब्दुस्समद
और माई ने उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा ख़ुदा बेटी और कौन है!राहताँ को इसके बाप के ज़रिए' पता चला था कि आज से कोई आधी सदी उधर की बात है, गाँव का एक नौजवान पटवारी माई ताजो को यहाँ ले आया था। कहते हैं माई ताजो इन दिनों इतनी ख़ूबसूरत थी कि अगर वो बादशाहों का ज़माना होता तो माई मलिका होती। उसके हुस्न का चर्चा फैला तो इस गाँव से निकल कर पटवारी के आबाई गाँव तक जा पहुँचा जहाँ से उसकी पहली बीवी अपने दो बच्चों के साथ यहाँ आ धमकी।
आख़िर वो दिन भी आ गया जब कि रात के ठीक 12 बजे माँ ने भैंस की तरह डकराना शुरू किया। मुहल्ला की कुल मुअज़्ज़िज़ बीवीयाँ ठीकरे और हाँडियों में बदबू-दार चीज़ें लेकर इधर से उधर दौड़ने लगीं। मोटी दोहर को बछड़े की रस्सी की मदद से खपरैल के कोने में तान कर माँ लिटा दी गई। बच्चों ने मिनमिनाना शुरू किया और आने वाले से बड़ा बच्चा पछाड़ें खा कर गिरने लगा। बापू ने सब...
और वो बहस के दौरान मज़ीद कज-बहसी से काम लेने लगी। वक़ार भी संजीदगी को छोड़कर गुस्से से काम लेने लगा तुम्हें ये नौकरी छोड़ देनी होगी।“तुम मुझे ऐसी कोई धमकी नहीं दे सकते।” अज़्रा के लहजे में आँसू आने लगे वो और भी अपने अक़ीदे पर सख़्त होती गई।
फिर दरख़्तों पर से आम, जामुन, कटहल, शरीफ़े, केले ख़त्म हो गय,। ताड़ी ख़त्म। साग सब्ज़ी ख़त्म। मछली ख़त्म। नारीयल ख़त्म। कहते हैं। ज़मींदार के पास मनों अनाज था और बनिये के पास भी। लेकिन कहाँ था, किस जगह था। किसी को मा’लूम न था। अनाज हासिल करने की सब तदबीरें रायगां गयीं। गिड़गिड़ाना, मिन्नतें करना। ख़ुदा से दुआ माँगना। ख़ुदा को धमकी देना, सब कुछ ख़त्म हो ...
उसकी माँ बहुत ख़ुश हुई। लड़की वाले उसके अ’ज़ीज़ थे और वो अ’र्सा हुआ उनको ज़बान दे चुकी थी। जब बासित ने हाँ की तो वो तारीख़ पक्की करने के लिए लड़की वालों के हाँ गई। उन्होंने टाल मटोल की तो बासित की माँ को बहुत ग़ुस्सा आया, “सईदा की माँ, मैंने इतनी मुश्किलों से बासित को रज़ामंद किया है, अब तुम तारीख़ पक्की नहीं कर रही हो। शादी होगी तो इसी महीने की बीस को ...
जुम्मन ने मज़्लूमाना अंदाज़ से जवाब दिया, “चाहिए क्यों नहीं, मेरा ख़ून चूस लो! कोई ये थोड़े ही समझता था कि तुम ख़्वाजा ख़िज्ऱ की हयात लेकर आई हो।”ख़ाला जान अपने मरने की बात नहीं सुन सकती थीं, जामा बाहर हो कर पंचायत की धमकी दी। जुम्मन हँसे, वो फ़ातिहाना हंसी जो शिकारी के लबों पर हिरन को जाल की तरफ़ जाते हुए देख कर नज़र आती है। कहा, “हाँ, ज़रूर पंचायत करो फ़ैसला हो जाए, मुझे भी रात-दिन का वबाल पसंद नहीं।”
ज़ुल्म सहने वालों का सब्र ख़त्म होता हैसिर्फ़ एक धमकी है फैलती है दहशत क्या
मेरी खोली के साथ ही एक और खोली थी जिसमें मारवाड़ का एक मुसलमान रक्कास रहता था। उसने मुझे मम्मद भाई की सैंकड़ों कहानियां सुनाईं। उसने मुझे बताया कि मम्मद भाई एक लाख रुपये का आदमी है। उसको एक मर्तबा हैज़ा हो गया था। मम्मद भाई को पता चला तो उसने फ़ारस रोड के तमाम डाक्टर उसकी खोली में इकट्ठे कर दिए और उनसे कहा, “देखो, अगर आशिक़ हुसैन को कुछ हो गया तो मैं ...
सकलेन समझ गया था। चुनांचे वो हर रोज़ सिर्फ़ एक सिगरट लाता था और पाइख़ाने में जा कर पिया करता था।मैं सकलेन से उम्र में तीन बरस छोटा हूँ। ज़ाहिर है कि मेरा सिगरेट पीना और वो भी बाज़ारों में खुले बंदों... अब्बा जी किसी तरह बर्दाश्त न करते। सकलेन को तो उन्हों ने सिर्फ़ धमकी दी थी मगर मुझे वो यक़ीनन घर से बाहर निकाल देते।
ये तो उसने यूंही कह दिया था। वर्ना सुधा कहाँ मोती को दिखाने वाली थी। वो मर जाती मगर अपने मोती को न दिखाती। इन लौंडियों का क्या भरोसा? मगर सुधा ने दफ़्तर में बुलाने की धमकी इस कामिल एतिमाद से दे दी थी कि इससे आगे पूछने की हिम्मत लड़कियों को न हुई और वो जल कर ख़ामोश रह गईं।सुधा का बूढ़ा बाप कुढ़ कुढ़ कर मर गया क्योंकि सुधा शादी न करती थी और मुहल्ले वाले तरह तरह की चेमिगोइयां करते थे और सुधा का बाप अपनी बेटी को कुछ न कह सकता था। क्योंकि सुधा जवान और बालिग़ थी और ख़ुदमुख़्तार भी थी। अब वो घर में दो सौ रुपये लाती... सुधा का बाप मर गया और उसके मरने के बाद अगले चंद सालों में सुधा के भाईयों की शादियां हो गईं और वो लोग अपनी अपनी बीवीयां लेकर अपनी अपनी मुलाज़मतों के ठिकानों पर चले गए। फिर उसकी छोटी बहन दिजे की भी शादी हो गई। फिर उसकी माँ भी अपनी बड़ी बेटी के कँवारपने के ग़म में सुलग सुलग कर मर गई और सुधा इस ग़म में अकेली रह गई। चंद माह के बाद उसने वो घर भी छोड़ दिया और सिविल लाईन्ज़ में एक उम्दा मकान की दूसरी मंज़िल में दो कमरे लेकर पेइंग गेस्ट (Paying Guest) के तौर पर रहने लगी। उसके रहने के हिस्से का दरवाज़ा अलग से बाहर निकलता था और अब वो अपनी नक़ल-व-हरकत में मुकम्मल ख़ुदमुख़्तार थी। अब वो पैंतीस बरस की हो चुकी थी मगर मुश्किल से तीस बरस की मालूम होती थी। उसके होंटों पर हर वक़्त मुस्कुराहट खेलती रहती और आँखों में ख़ुशीयों के साये नाचते रहते। वो पहले से ज़्यादा संजीदा और बावक़ार हो गई थी। वो स्टेनो भी हो गई थी। उसने बी.ए. भी कर लिया था। उसकी तनख़्वाह भी बढ़ गई थी और किताबें पढ़ने का शौक़ भी...
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