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ग़ज़ल
फ़ुर्सत मिले कभी तो शब-ए-ग़म से पोंछना
टूटे हैं चश्म-ए-'शौक़' से तारे कहाँ कहाँ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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फ़ुर्सत मिले कभी तो शब-ए-ग़म से पोंछना
टूटे हैं चश्म-ए-'शौक़' से तारे कहाँ कहाँ