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ग़ज़ल
सय्यद ख़ुर्शीद आलम काकवी
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ग़ज़ल
सुर्ख़-रू हो के निकलना तो बहुत मुश्किल है
दस्त-ए-क़ातिल में यहाँ साज़ है तलवार नहीं
कामिल बहज़ादी
ग़ज़ल
इश्क़-ए-कामिल में तो हाजत अमल-ए-हुब की नहीं
क़ैस माशूक़ बना हो गई लीला आशिक़
पीर शेर मोहम्मद आजिज़
ग़ज़ल
हम ने सुना कि हज़रत-ए-'कामिल' गुज़र गए
है आरज़ू कि निकले ख़बर या-ख़ुदा ग़लत
हकीम अनवार मोहम्मद ख़ाँ कामिल
ग़ज़ल
है हज़रत-ए-'कामिल' की बहुत अच्छी ये आदत
कह देते हैं हर एक से वल्लाह खरी बात
हकीम अनवार मोहम्मद ख़ाँ कामिल
ग़ज़ल
दावा-ए-ग़ज़ल-गोई करता है अगर 'कामिल'
शागिर्द किसी का हो गर मश्क़-ए-सुख़न पैदा