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नज़्म
वतन का राग
'कृष्ण' की बंसी ने फूंकी है रूह हमारी जानों में
'गौतम' की आवाज़ बसी है महलों में मैदानों में
हामिदुल्लाह अफ़सर
शेर
जिस्म-ए-आज़ादी में फूंकी तू ने मजबूरी की रूह
ख़ैर जो चाहा किया अब ये बता हम क्या करें
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
नई तहज़ीब से साक़ी ने ऐसी गर्म-जोशी की
कि आख़िर मुस्लिमों में रूह फूंकी बादा-नोशी की
अकबर इलाहाबादी
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ग़ज़ल
जिस्म-ए-आज़ादी में फूंकी तू ने मजबूरी की रूह
ख़ैर जो चाहा किया अब ये बता हम क्या करें
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
वहाँ जब थे तो जिस्म-ए-ना-तावाँ में रूह फूंकी थी
यहाँ जिस दिन से आए आप बन बैठे क़ज़ा मेरी
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
शोलों की इस हमदर्दी पर दिल में लावा पकता है
जब सारी बस्ती फूंकी थी क्यूँ मेरा घर छोड़ दिया