aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बे-शक"
बे-शक रात है बे-शक
हम दोनों बे-शकअलग अलग राहों पे चलें
बे-शक झगड़ा तूली होलेकिन बात उसूली हो
मुझे अँधेरे में बे-शक बिठा दिया होतामगर चराग़ की सूरत जला दिया होता
रखो तुम बंद बे-शक अपनी घड़ियाँसमय तो रात दिन चलता रहेगा
यूँ तो प्यास पानी की तलब का नाम है लेकिन उर्दू शायरी या अदब में किसी भी शय की शदीद ख़्वाहिश को प्यास का ही नाम दिया गया है। प्यास के हवाले से कर्बला के वाक़ेआत की तरफ़ भी उर्दू शायरी में कई हवाले मिलते हैं। साक़ी शराब और मैख़ाने का भी शायरी ने तश्नगी से रिश्ता जोड़ रखा है। तश्नगी शायरी के ये बे-शुमार रंग मुलाहिज़ा फ़रमाइयेः
मेहमान के हवाले से हिन्दुस्तानी तहज़ीबी रिवायात में बहुत ख़ुश-गवार तसव्वुरात पाए जाते हैं। मेहमान का आना घर में बरकत का और ख़ुशहाली का शगुन समझा जाता है। ये शायरी मेहमान की इस जहत के साथ और बहुत सी जहतों को मौज़ू बनाती है। मेहमान के क़याम की आरिज़ी नौइयत को भी शाइरों ने बहुत मुख़्तलिफ़ ढंग से बरता है। आप हमारे इस इंतिख़ाब में देखेंगे कि मेहमान का लफ़्ज़ किस तरह ज़िंदगी की कसीर सूरतों के लिए एक बड़े इस्तिआरे की शक्ल में धुल गया है।
बे-शकبے شک
doubtless
सदा-ए-अंदलीब बर शाख़-ए-शब
शाइस्ता फाख़री
नॉवेल / उपन्यास
तुम अपनी फ़िक्र को बे-शक उड़ान में रखनाज़मीन-बोस इमारत भी ध्यान में रखना
ले के बे-शक हाथ में ख़ंजर चलोओढ़ कर इख़्लास की चादर चलो
तू बे-शक मीठा मीठा बोलता हैमगर कुछ और चेहरा बोलता है
अपनी ही आवाज़ को बे-शक कान में रखनालेकिन शहर की ख़ामोशी भी ध्यान में रखना
बे-शक बाहर से वो राज़ी होता हैहर कोई अंदर से बाग़ी होता है
बे-शक हमारे हाथ से तलवार छीन लेमुमकिन नहीं कि जुरअत-ए-इज़हार छीन ले
यहाँ की औरतों को इल्म की परवा नहीं बे-शकमगर ये शौहरों से अपने बे-परवा नहीं होतीं
बे-शक अपने ज़ेबाई पर उस को नाज़ रहेलेकिन शाम सवेरे याद आने से बाज़ रहे
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