aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मच्छर"
मच्छर फ़ख़री संभली
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उस के बाद फिर साल भर मैं मामूँ के घर में “ज़िंदगी है तो ख़ज़ाँ के भी गुज़र जाएँगे दिन” गाता रहा। हर साल मेरी दरख़्वास्त का यही हश्र होता रहा। लेकिन मैंने हिम्मत न हारी। हर साल नाकामी का मुंह देखना पड़ता लेकिन अगले साल गर्मियों की छुट्टी में...
कमरा बहुत छोटा था जिसमें बेशुमार चीज़ें बेतर्तीबी के साथ बिखरी हुई थीं। तीन चार सूखे सड़े चप्पल पलंग के नीचे पड़े थे जिनके ऊपर मुँह रख कर एक ख़ारिश ज़दा कुत्ता सो रहा था और नींद में किसी ग़ैरमरई चीज़ को मुँह चिड़ा रहा था। उस कुत्ते के बाल...
पिश्शा मच्छर और मक्खी है मगसआशियाना घोंसला पिंजरा क़फ़स
क़ ने मुस्कुरा कर फ़रमाया, “ज़ाहिर है जिस कमरे में आप सोते हैं, वहां इतने मच्छर हैं कि वो रात-भर आपको काटते रहते हैं। इस हालत में नींद आए भी तो कैसे? मालूम होता है या तो आपके पास मसहरी नहीं और अगर है तो इतनी बोसीदा कि उसमें...
मोज़ील ने लंबा कुरता उठा कर अपनी गोरी दबीज़ रान खुजलानी शुरू की, “ये बहुत अच्छा है... मगर ये कमबख़्त मच्छर यहां भी मौजूद है... देखो, किस ज़ोर से काटा है।” त्रिलोचन ने दूसरी तरफ़ देखना शुरू कर दिया। मोज़ील ने उस जगह जहां मच्छर ने काटा था उंगली से...
मच्छरمچھر
mosquito
Bhinbhinahat
यही हालत चारपाई की है, फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि इन मुलाज़िम साहिब से कहीं ज़्यादा कार-आमद होती है! फ़र्ज़ कीजिए आप बीमार हैं सफ़र-ए-आख़िरत का सामान मयस्सर हो या न हो अगर चारपाई आपके पास है तो दुनिया में आपको किसी और चीज़ की हाजत नहीं। दवा की पुड़िया...
अब तमाशे की तरफ़ मुतवज्जे होंता हूँ और समझने की कोशिश करता हूँ कि फ़िल्म कौन सी है? उसकी कहानी क्या है? और कहाँ तक पहुंच चुकी है? और समझ में सिर्फ़ इस क़दर आता है कि एक मर्द और एक औरत जो पर्दे पर बग़ल-गीर नज़र आते हैं, एक...
नॉन्ग काई में मैं मेकांग दरिया में नहाया उसके बाद लाओस आ गया। दीन तीन एक बड़े से गावं की मानिंद है। धूप बहुत तेज़ है और सड़कें गर्द-आलूद। सिर्फ़ रातें ख़ुशगवार हैं क्योंकि अंधेरा सारी बद-सूरती, ज़ुल्म और तशद्दुद और ख़ूँरेज़ी को अपने अंदर छुपा लेता है मच्छर बहुत...
“मियाऊं।”, पड़ोस की बालकनी से बिल्ली धम से उनकी बालकनी में कूदी मगर दोनों बहनों में से किसी को मामूँ की हिदायत का ख़याल न आया, फिर ये डयूटी तो मामूँ ज़ुहरा के सपुर्द कर गए थे। सितारा को हक़ था कि वो रियाज़ के बारे में सोचने लगे। रियाज़...
“मोटे मोटे क़हक़हे लगाते हुए मच्छर।” (तिल) ...
“ये क्या पागलपन है... नीचे इतने मच्छर हैं, पंखा भी नहीं... सच कहती हूँ, आप बिल्कुल पागल हैं... मैं नहीं जाने दूंगी आपको।” “मैं यहां क्या करूंगा... मच्छर हैं पंखा नहीं है, ठीक है। मैंने ज़िंदगी के बुरे दिन भी गुज़ारे हैं। तन आसान नहीं हूँ... सो जाऊंगा सोफ़े पर।”...
“तुम खाना बहुत जल्द खा लेते हो...?”, पदमा ने कहा। “हाँ वर्ना फिर मच्छर और पतंगे बहुत सताते हैं।”...
ये सुन कर क़रीब था कि मैं बेहोश होजाऊं कि टन-टन शुरू हुई। दूर कोई क्लाक सुबह के पाँच बजने की इत्तिला दे रहा था। मैंने बड़ी बी की ठोढ़ी पकड़ी और उसके मुरझाए हुए होंटों का बोसा लेकर झूट बोलते हुए कहा, “मैंने अपनी ज़िंदगी में सैंकड़ों औरतें देखी...
मगर है समुंदर का मैदान तंग। करे किस तरह कोई मच्छर से जंग।...
जब ये महफ़िल-भर जाती तो गुफ़्तगू का सिलसिला शुरू' होता। इसके लिए किसी ख़ास मौज़ू' की पाबंदी न थी। आम तौर पर किसी अख़बार के ज़मीमा की ख़बर, क़त्ल या लूट-मार का कोई वाक़िआ', किसी मुग़न्निया की आमद या किसी लीडर का इग़वा, मच्छर वग़ैरह गुफ़्तगू के आग़ाज़ का बाइस...
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