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ग़ज़ल
जाने किस रंग में तफ़्सीर करें अहल-ए-हवस
मदह-ए-ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार करूँ या न करूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
शेर
या गुफ़्तुगू हो उन लब-ओ-रुख़्सार-ओ-ज़ुल्फ़ की
या उन ख़मोश नज़रों के लुत्फ़-ए-सुख़न की बात
जयकृष्ण चौधरी हबीब
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ग़ज़ल
जब ये आलम हो तो लिखिए लब-ओ-रुख़्सार पे ख़ाक
उड़ती है ख़ाना-ए-दिल के दर-ओ-दीवार पे ख़ाक
इरफ़ान सिद्दीक़ी
शेर
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
और कुछ ख़ून-ए-जिगर हम भी मिला देते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
कुंज-ए-तन्हाई के अफ़्कार में क्या रक्खा है
ज़िक्र-ए-ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार में क्या रक्खा है
साबिर आरवी
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़-ओ-लब-ओ-रुख़्सार के आज़र तो बहुत हैं
टूटे हुए ख़्वाबों का मसीहा नहीं मिलता