aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मुंडा"
महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनेंजो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
किताब-ए-माज़ी के औराक़ उलट के देख ज़रान जाने कौन सा सफ़हा मुड़ा हुआ निकले
गोली कुत्ते की टांग में लगी। एक फ़लक शि्गाफ़ चीख़ बुलंद हुई। उसने अपना रुख़ बदला। लंगड़ा लंगड़ा कर सूबेदार हिम्मत ख़ां के मोर्चे की तरफ़ दौड़ने लगा तो उधर से भी फ़ायर हुआ, मगर वो सिर्फ़ डराने के लिए किया गया था। हिम्मत ख़ां फ़ायर करते ही चिल्लाया, “बहादुर...
गया घबरा कर बाहर निकला, उसने बैलों का पीछा किया वो और तेज़ हो गए। गया ने जब उनको हाथ से निकलते देखा तो गाँव के कुछ और आदमियों को साथ लेने के लिए लौटा। फिर क्या था दोनों बैलों को भागने का मौक़ा मिल गया। सीधे दौड़े चले गए।...
ज़रा आगे बढ़े तो सड़क पर एक सिगरेट-पान वाला बैठा था। तांगे वाले ने अपना ताँगा रोका। मैं उतरा तो ज़ाहिदा ने कहा, “आप क्यों तकलीफ़ करते हैं, ये तांगे वाला ले आएगा।” मैंने कहा, “इसमें तकलीफ़ की क्या बात है”, और उस पान-सिगरेट वाले के पास पहुंच गया। एक...
मुँडाمنڈا
bald
बिरसा मुंडा
पशुपतिनाथ सिंह
भारत का इतिहास
मुड़ मुड़ के न देख
फ़िल्मी-नग़्मे
“देख लूंगी।” और वो तेज़ी से आगे बढ़ी। त्रिलोचन की मूँछों को चूमा और फ़ूं फ़ूं करती बाहर निकल गई। त्रिलोचन ने रात भर क्या सोचा... वो किन किन अज़ीयतों से गुज़रा, इसका तज़्किरा फ़ुज़ूल है, इसलिए कि दूसरे रोज़ उसने फोर्ट में अपने केस कटवा दिए और दाढ़ी भी...
उसकी बहकी हुई निगाहों की तवज्जो भैंस से हट कर मेरे तबस्सुम से टकराई। मैं घबरा गया। उसने एक तेज़ तजस्सुस से मेरी तरफ़ देखा, जैसे वो किसी भूले हुए ख़्वाब को याद कर रही है। फिर उस ने अपनी छड़ी को दाँतों में दबा कर कुछ सोचा और मुस्कुरा...
बस में बैठी है मिरे पास जो इक ज़ोहरा-जबींमर्द निकलेगी अगर ज़ुल्फ़ मुँडा दी जाए
मिर्ज़ा साहब मेरी इस तक़रीर के दौरान कुछ इस बे-परवाई से सिगरेट पीते रहे कि दोस्तों की बे-वफाई पर रोने को दिल चाहता था। मैंने अज़-हद हिक़ारत और नफ़रत के साथ मुँह उनकी तरफ़ से फेर लिया। ऐसा मालूम होता था कि मिर्ज़ा को मेरी बातों पर यक़ीन ही नहीं...
लड़की ने मुड़ कर देखा, उसके होंटों पर छोटी सी मुस्कुराहट थी। किफ़ायत दफ़्तर चला गया, उसको उम्मीद थी कि कुछ रूपों का बंदोबस्त हो जाएगा लेकिन ख़ाली जेब वापस आया। बर्मी लड़की अंदर बेडरूम में लेटी तस्वीरों वाला रिसाला देख रही थी। किफ़ायत को देख कर बैठ गई और...
मुँडा जूता गर आप को है पसंदक़ौम को इस से फ़ाएदा न गज़ंद
थे सब उसी के लम्स से जल-थल बने हुएदरिया मुड़ा तो अपनी रवानी भी ले गया
और ये आयत पढ़ कर आप मलूल हुए। मैंने सवाल किया, “या शेख़! ये आयत आपने क्यों पढ़ी? और पढ़ कर मलूल किस बाइस हुए?” इस पर आपने आह-ए-सर्द भरी और अहमद हिजरी का क़िस्सा सुनाया जो मन-ओ-एन नक़ल करता हूँ। “अहमद हिजरी अपने वक़्त के बुज़ुर्ग शायर थे मगर...
टांगे अब भी खड़े थे मगर उन पर वो कलग़ियाँ, वो फुंदने, वो पीतल के पालिश किए हुए साज़-ओ-सामान की चमक-दमक नहीं थी। ये भी शायद दूसरी चीज़ों के साथ उड़ गई थी। उसने घड़ी में वक़्त देखा, पाँच बज चुके थे। फ़रवरी के दिन थे। शाम के साए छाने...
जब लोहे के चने चब चुके तो ख़ुदा-ख़ुदा कर के जवानी बुख़ार की तरह चढ़नी शुरू हुई। रग-रग से बहती आग का दरिया उमँड पड़ा। अल्हड़ चाल, नशे में ग़र्क़, शबाब में मस्त। मगर उसके साथ-साथ कुल पाजामे इतने छोटे हो गए कि बालिश्त-बालिश्त भर नेफ़ा डालने पर भी अटंगे...
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