aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "मुंबई"
रज़ा अकेडमी, मुंबई
पर्काशक
ताज ऑफ़िस मोहम्मद अली रोड, मुंबई
रख़्शंदा किताब घर, मुंबई
इदारा फ़न व शख़्सियत, मुंबई
मंज़ूर नाडकर एण्ड संस, मुंबई
डी. बी. बुक डिपो, मुंबई
मतबा रहीमी, मुंबई
आर. के. पब्लिकेशन, मुंबई
किताबिस्तान पब्लिशर्स, मुंबई
हाफ़िज़ पब्लिकेशंस, मुंबई
मत्बा मुस्तफ़ाई, मुंबई
अंजुमन मुसलमानान, मजगांव, मुंबई
क़ुतुब पब्लिशर्स लिमिटेड, मुंबई
मकतबा अल-हक़, मुंबई
इस्बात पब्लिकेशन्स, मुंबई
ताराबाई की आँखें तारों की ऐसी रौशन हैं और वो गर्द-ओ-पेश की हर चीज़ को हैरत से तकती है। दर असल ताराबाई के चेहरे पर आँखें ही आँखें हैं । वो क़हत की सूखी मारी लड़की है। जिसे बेगम अल्मास ख़ुरशीद आलम के हाँ काम करते हुए सिर्फ़ चंद माह...
रामप्रकाश कपूर ने अपनी तहरीर मतबूआ’ “शाइ'र” मुंबई में हाशिम अ'ली अख़्तर साहब (साबिक़ वाइस चांसलर, उस्मानिया यूनीवर्सिटी, और फिर अ'लीगढ़ यूनीवर्सिटी) का हवाला दिया है कि उनके दोस्तों, रिश्तेदारों में “चालीस की उ'म्र से कम वाला एक भी फ़र्द उर्दू रस्म-उल-ख़त नहीं जानता।” लिहाज़ा हाशिम अ'ली साहब चाहते हैं...
दिल पूना से मुंबई तक भी जाए तोरस्ते में दिल्ली कलकत्ता होता है
क्योंकि उसने सुना था कि उसका होने वाला मंगेतर मुंबई स्कूल आफ़ इकोनॉमिक्स से डिग्री लेने के बा’द घर वापस जाने के बजाए यहाँ सिर्फ़ इसलिए रहता है क्योंकि यहाँ उसकी एक कैम्प मौजूद है और वो ड्रिंक भी करता है और मौसम-ए-गर्मा की चाँदनी रातों में अपने बोहैमियन दोस्तों...
इनमें पहली दो तस्वीरें हक़ीक़त की तबई’ सत्ह से एक पल के लिए ऊपर नहीं उठतीं और उनके किरदार अपने गोश्त-पोस्त के साथ पढ़ने वाले को मुतहर्रिक दिखाई देते हैं। तीसरी तस्वीर हक़ीक़त के मशहूद तजरबे को एक ग़ैर-मुरई तअस्सुर की सत्ह तक ले जाती है और वाक़िए’ को कैफ़ियत...
मुंबईممبئی
a city of India
कोकण और मुंबई के उर्दू लोक गीत
मैमूना दलवी
लोक गीत
Shumara Number - 005
साग़र निज़ामी
एशिया, मुंबई
Kitabi Silsila-001
राम पंडित
एतिराफ़
Tasawwuf Aur Hindustani Muashara
मुहिउद्दीन मुम्बई वाला
शोध / समीक्षा
Shumara Number-003,004
एजाज़ सिद्दीक़ी
Mar, Apr 1967शाइर, मुम्बई
Shumara Number-006,007,008
इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दीक़ी
Jun, Jul, Aug 1983शाइर, मुम्बई
Shumara Number-002
अब्दुस समी बुबेरे
Feb 1978सुब्ह-ए-उम्मीद, मुंबई
अबदुस्सत्तार दलवी
Mar, Oct 2015नवा-ए-अदब
002
नया अदब, मुम्बई
Shumara Number-008
फ़ारूक़ सय्यद
Apr 2019गुल बूटे, मुम्बई
Shumara Number-004
अली जवाद ज़ैदी
Jun 1993अल-इल्म, मुम्बई
Mar, Apr 1977शाइर, मुम्बई
साहब अली
Nov 2013उर्दू नामा, मुम्बई
Shumara Number-006
Feb 2019गुल बूटे, मुम्बई
Shumara Number-005,006,007
May, Jun, Jul 1977शाइर, मुम्बई
सिर्फ़ अठारह साल की ज़िंदगी में तुमने इतनी बातें कैसे कह लीं! बज़ाहिर तुम कितनी मामूली लड़की थीं। छोटे छोटे काँधों तक लहराते हुए बाल जिनकी बारीक बारीक आवारा लटें चेहरे के गिर्द हाला सा बनाए काँपती रहतीं। मामूली सा क़द, दुबला पतला धान पान जिस्म जैसे तेज़ हवा के...
मैं देर तक बोसीदा दीवार से लगा, ताँगे के ढाँचे को देखता रहा, जिसका एक हिस्सा ज़मीन में धँस चुका था और दूसरा एक सूखे पेड़ के साथ सहारा लिए खड़ा था, जिसकी टुंड मुंड शाख़ों पर बैठा कव्वा काएँ काएँ कर रहा था। कुछ राहगीर सलाम दुआ के लिए...
शहर मुंबईमुझे उस ने चुना है हम-सफ़र अपना
अहबाब रिश्ते-दार सभी मुंबई में हैंलेकिन दिलों के बीच बड़े फ़ासले हैं यार
मुंबई में मुझे तीन चीज़ें पसंद आई हैं, समुंद्र, नारीयल के दरख़्त और बंबई की ऐक्ट्रस। अस्ल में इन तीन चीज़ों से बंबई ज़िंदा है, अगर इन तीन चीज़ों को बंबई से निकाल दिया जाये तो बंबई, बंबई ना रहे, शायद दिल्ली बन जाये या लाहौर।...
"हाँ भइया! घर के सारे मर्द मारे गए। बड़े दाता हकम का एक बेटा और मँझले दाता हाकिम के दो बेटे मुंबई के किसी बड़े कालेज में पढ़ते हैं, सो बच गए।" डूंगर गोला ने जो, अब बूढ़ा हो गया था, खाँसते हुए ढेर सा बलग़म धूल भरी ज़मीन पर...
एक शय का नाम जो बतलाए उस का नाम होअपनी गलियों में नहीं है मुंबई सी चाल भर
तू ने ऐ मुंबई जो कुछ भी दिया है मुझ कोवो मिरा शहर तो सदियों भी न दे पाए मुझे
चका-चौंधहैरत-ज़दा
ख़्याबान-ए-दानिश-गह-ए-मुंबई सेयहाँ राजपथ के सफ़र तक
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