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ग़ज़ल
अब जो रोते हैं मिरे हाल-ए-ज़बूँ पर 'अख़्तर'
कल यही थे मुझे हँस हँस के रुलाने वाले
अख़्तर सईद ख़ान
ग़ज़ल
क्या क़यामत है कि रुलवा के हमें ऐ 'जौहर'
क़हक़हे मार के हँसते हैं रुलाने वाले