aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सज़ा-ए-मौत"
زندان کی چار دیواری میں متواتر پانچ ہفتوں سے یہی ہولناک حقیقت میرے لئے سوہان روح رہی ہے۔ اسی وحشت ناک خبر نے مجھے تنہا بے یارومددگار کو دبا رکھا ہے۔
सज़ा-ए-मौत दी गईक्यूँ?
मुझ को सज़ा-ए-मौत का धोका दिया गयामेरा वजूद मुझ में ही दफ़ना दिया गया
सज़ा-ए-मौत पे फ़रियाद से तो बेहतर हैगले लगा के कहूँ दार को मुबारक बाद
तुम्हें मोहब्बत करने के जुर्म में सज़ा-ए-मौत दी जाती हैउस ने सिगरेट का तवील कश लेते हुए
इन्सान के अपने यौम-ए-पैदाइश से ज़्यादा अहम दिन उस के लिए और कौन सा हो सकता है। ये दिन बार बार आता है और इन्सान को ख़ुशी और दुख से मिले जुले जज़्बात से भर जाता है। हर साल लौट कर आने वाली सालगिरा ज़िंदगी के गुज़रने और मौत से क़रीब होने के एहसास को भी शदीद करती है और ज़िंदगी के नए पड़ाव की तरफ़ बढ़ने की ख़ुशी को भी। सालगिरा से वाबस्ता और भी कई ऐसे गोशे हैं जिन्हें शायद आप न जानते हों। हमारे इस इन्तिख़ाब को पढ़िए।
सज़ा-ए-मौतسزائے موت
death sentence
मेरी गवाही क़ातिल को सज़ा-ए-मौतया उम्र-क़ैद की सज़ा दिला सकती थी लेकिन
तुम्हारे साथ गुनाहों में होते शामिल तोसज़ा-ए-मौत से पहले ही मर गए होते
सज़ा-ए-मौत नहीं उम्र-क़ैद काटोगेये हुक्म आ ही गया दिल की राजधानी से
मुद्दई ख़ुश थे सज़ा-ए-मौत पर 'तारिक़' मगरक्यों मुझे मुंसिफ़ का चेहरा इतना अफ़्सुर्दा लगा
हक़ बात के एवज़ में मिली है सज़ा-ए-मौतगुस्ताख़ी-ए-ज़बाँ पे नदामत नहीं मुझे
जीवन सज़ा-ए-मौत से पहले का खेल हैसब को है ये मिली हुई मोहलत गुज़ारना
दे सज़ा-ए-मौत या फिर बख़्श दे तू ज़िंदगीकश्मकश से यार तेरी सख़्त घबराता हूँ मैं
ग़रीब-ए-शहर था आँखों में थी अना ज़िंदासज़ा-ए-मौत न देता तो शाह क्या करता
मेरी सज़ा-ए-मौत पे इक जश्न था बपावो शोर था कि मेरी फ़ुग़ाँ काट दी गई
गए वो दिन कि तिरी दुश्मनी से डरते थेसज़ा-ए-मौत हैं अब तो तिरी पनाहें भी
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