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नज़्म
रक़ीब से!
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
मुझे ऐ हम-नशीं रहने दे शग़्ल-ए-सीना-कावी में
कि मैं दाग़-ए-मोहब्बत को नुमायाँ कर के छोड़ूँगा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नया शिवाला
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जंग-ओ-जदल सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने