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ग़ज़ल
जिस बादल की आस में जोड़े खोल लिए हैं सुहागन ने
वो पर्बत से टकरा कर बरस चुका सहराओं में
बशीर बद्र
तंज़-ओ-मज़ाह
मुश्ताक़ अहमद यूसुफ़ी
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कहानी
राजिंदर सिंह बेदी
हास्य
मगर शाइ'र की बीवी फिर भी उस की नाम-लेवा है
जो दिन में तो सुहागन है मगर रातों को बेवा है