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ग़ज़ल
हिजाब-ए-राज़ फ़ैज़-ए-मुर्शिद-ए-कामिल से उठता है
नज़र हक़-आश्ना होती है पर्दा दिल से उठता है
शेर सिंह नाज़ देहलवी
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कहानी
“आह…”, मैंने नातवाँ लहजे में कहा, “क्या ये रात फिर वापिस ना आएगी?”
“नहीं, मेरी रूही फिर कभी नहीं...”
हिजाब इम्तियाज़ अली
ग़ज़ल
अगर अहद-ए-वफ़ा से तू भी फिर जाए मोहब्बत में
'हिजाब' उस शोख़ को मालूम हो जाए दग़ा देना
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
ग़ज़ल
'हिजाब' पैहम ये कह रहा है गुनाहगारों ने जोश-ए-रहमत
मुबारक ऐ आसियो मुबारक शफ़ी-ए-रोज़-ए-जज़ा की आमद