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ग़ज़ल
उठी जाती है दिल से हैबत-ए-आलाम-ए-रूहानी
जराहत बहर-ए-क़ल्ब-ए-ज़ार मरहम होती जाती है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
हुजूम-ए-आलाम-ओ-ग़म सलामत मगर है फिर भी कोई ख़ला सा
यही तो है राज़ ज़िंदगी का बताए 'हानी' तो क्या बताए
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
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नज़्म
मजबूरियाँ
कहाँ तक क़िस्स-ए-आलाम-ए-फ़ुर्क़त मुख़्तसर ये है
यहाँ वो आ नहीं सकती वहाँ मैं जा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ून-ए-तमन्ना
गर्दिश-ए-दौराँ पे कोई फ़त्ह पा सकता नहीं
तेरे लब पर शिकवा-ए-आलाम-ए-दौराँ है तो क्या