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नज़्म
रक़ीब से!
हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है
जुज़ तिरे और को समझाऊँ तो समझा न सकूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़ितरत-ए-हुस्न तो मा'लूम है तुझ को हमदम
चारा ही क्या है ब-जुज़ सब्र सो होता भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
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नज़्म
दो इश्क़
इस इश्क़ न उस इश्क़ पे नादिम है मगर दिल
हर दाग़ है इस दिल में ब-जुज़-दाग़-ए-नदामत
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़लंदर जुज़ दो हर्फ़-ए-ला-इलाह कुछ भी नहीं रखता
फ़क़ीह-ए-शहर क़ारूँ है लुग़त-हा-ए-हिजाज़ी का
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक लड़का
जुज़ इक ज़ेहन-ए-रसा कुछ भी नहीं फिर भी मगर मुझ को
ख़रोश-ए-उम्र के इत्माम तक इक बार उठाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
ख़ूगर-ए-परवाज़ को परवाज़ में डर कुछ नहीं
मौत इस गुलशन में जुज़ संजीदन-ए-पर कुछ नहीं