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ग़ज़ल
वो बूढ़ा इक ख़्वाब है और इक ख़्वाब में आता रहता है
इस के सर पर अन-देखा पंछी मंडलाता रहता है
ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
ग़ज़ल
अक़्ल गई है सब की खोई क्या ये ख़ल्क़ दिवानी है
आप हलाल मैं होता हूँ इन लोगों को क़ुर्बानी है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
मोहब्बत का तिरी बंदा हर इक को ऐ सनम पाया
बराबर गर्दन-ए-शाह-ओ-गदा दोनों को ख़म पाया
हैदर अली आतिश
नज़्म
ज़ोहद और रिंदी
इक मौलवी साहब की सुनाता हूँ कहानी
तेज़ी नहीं मंज़ूर तबीअत की दिखानी