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नज़्म
आज की रात
देखना जज़्ब-ए-मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
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ग़ज़ल
क़ुल्ज़ुम-ए-उल्फ़त में वो तूफ़ान का आलम हुआ
जो सफ़ीना दिल का था दरहम हुआ बरहम हुआ
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
तारे गिनते रात कटती ही नहीं आती है नींद
दिल को तड़पाता है हिज्र आँखों को तरसाती है नींद
इमदाद अली बहर
नज़्म
पछतावा
दर-ओ-दीवार पे हिजरत के निशाँ देख आएँ
आओ हम अपने बुज़ुर्गों के मकाँ देख आएँ