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ग़ज़ल
ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ
कि जैसे इक दिया हूँ और हवा की ज़द पे रक्खा हूँ
ज़ुबैर रिज़वी
ग़ज़ल
दोस्त ख़ुश होते हैं जब दोस्त का ग़म देखते हैं
कैसी दुनिया है इलाही जिसे हम देखते हैं
सफ़ी औरंगाबादी
हास्य शायरी
एक दिन बीवी ने फ़रमाया तुम्हारी हर किताब
फ़ालतू सामान है कूड़ा है रद्दी है जनाब
अहमद अल्वी
ग़ज़ल
हज़ार आरज़ू हो तुम यक़ीं हो तुम गुमाँ हो तुम
क़फ़स-नसीब रूह की उमीद-ए-आशियाँ हो तुम