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ग़ज़ल
तुझ बिन प्यारा प्यारा मौसम है कितना बेचैन
शाख़ें लर्ज़ां ख़ुशबू हैराँ और हवा बेचैन
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
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नज़्म
दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया
दर्द तंहाई की पस्ली से निकल कर आया
रात का हाथ लगा और हवा टूट गई
आदिल मंसूरी
नस्री-नज़्म
वो किसी गैलिलियो का इंतिज़ार नहीं कर रहे हैं
एक बड़ी घड़ी तय्यार करने के लिए