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उद्धरण
सआदत हसन मंटो
नज़्म
नौ-जवान ख़ातून से
सनानें खींच ली हैं सर-फिरे बाग़ी जवानों ने
तू सामान-ए-जराहत अब उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
मालिक से और मिट्टी से और माँ से बाग़ी शख़्स
दर्द के हर मीसाक़ से रु-गर्दानी करता है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
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शेर
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है
मीर तक़ी मीर
नज़्म
शिकवा
मुज़्तरिब-बाग़ के हर ग़ुंचे में है बू-ए-नियाज़
तू ज़रा छेड़ तो दे तिश्ना-ए-मिज़राब है साज़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़ुद तो बाग़ी हुए हम तुझ से मगर साथ ही साथ
दिल-ए-रुस्वा को तिरे ज़ेर-ए-नगीं रहने दिया
ज़फ़र इक़बाल
नज़्म
तुलू-ए-इश्तिराकियत
चौक चौक पर गली गली में सुर्ख़ फरेरे लहराते हैं
मज़लूमों के बाग़ी लश्कर सैल-सिफ़त उमडे आते हैं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है