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ग़ज़ल
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह ओ दमन
मुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शाइर-ए-मशरिक़ की अर्ज़-दाश्त
अल्लामा-इक़बाल के हुज़ूर
फ़ितरत का कारोबार तो चलता है आज भी
ज़हीर सिद्दीक़ी
नज़्म
गुल-ए-रंगीं
तू शनासा-ए-ख़राश-ए-उक़्दा-ए-मुश्किल नहीं
ऐ गुल-ए-रंगीं तिरे पहलू में शायद दिल नहीं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शिकवा
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हिमाला
ऐ हिमाला ऐ फ़सील-ए-किश्वर-ए-हिन्दुस्तान
चूमता है तेरी पेशानी को झुक कर आसमाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तस्वीर-ए-दर्द
नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शुनीदन दास्ताँ मेरी
ख़मोशी गुफ़्तुगू है बे-ज़बानी है ज़बाँ मेरी