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नज़्म
किस से मोहब्बत है
कोई मेरे सिवा उस का निशाँ पा ही नहीं सकता
कोई उस बारगाह-ए-नाज़ तक जा ही नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
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ग़ज़ल
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना को
चला हूँ बारगाह-ए-इश्क़ में ले कर ये नज़राना
बेदम शाह वारसी
नज़्म
नज़्र-ए-कॉलेज
ऐ वादी-ए-जमील मिरे दिल की धड़कनें
आदाब कह रही हैं तिरी बारगाह में
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दिल्ली से वापसी
मा'बद-ए-हुस्न-ओ-मोहब्बत बारगाह-ए-सोज़-ओ-साज़
तेरे बुत-ख़ाने हसीं तेरे कलीसा दिल-नवाज़
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हवेली
ज़ीस्त को दर्स-ए-अजल देती है जिस की बारगाह
क़हक़हा बन कर निकलती है जहाँ हर एक आह
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
फ़ना
जो ख़ाक से बना है वो आख़िर को ख़ाक हैं
वो शख़्स थे जो सात विलायत के बादशाह