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हिंदी ग़ज़ल
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जल्सा हुआ होगा
दुष्यंत कुमार
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शेर
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ऐ इश्क़ कहीं ले चल
ऐ इश्क़ कहीं ले चल इस पाप की बस्ती से
नफ़रत-गह-ए-आलम से ल'अनत-गह-ए-हस्ती से
अख़्तर शीरानी
ग़ज़ल
मुझ में बसते सारे सन्नाटों की लय उस से बनी
पत्थरों के दरमियाँ थी नग़्मा-गर उस ने किया
परवीन शाकिर
नज़्म
ज़ियादा पास मत आना
शिकस्ता ख़्वाहिशों के अन-गिनत आसेब बस्ते हैं
जो आधी शब तो रोते हैं फिर आधी रात हँसते हैं
रहमान फ़ारिस
ग़ज़ल
दर्द तो साँसों में बस्ते हैं कौन दिखाए तुम्हें
फूलों पर ख़ुशबू का गहना कैसा लगता है
ख़ालिद अहमद
ग़ज़ल
सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया