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रेख़्ती
चाँदी तो क्या मैं सोने में मँढवा दूँ ऐ बुआ
हो ढोलने की तुझ को जो क़ुरआन की हवस
मीर यार अली जान
हास्य शायरी
बुआ कह कर पुकारे जो उसे सौ-सौ सुनाती है
वो इस पीराना-साली में भी बाजी कहलवाती है
असद जाफ़री
रेख़्ती
मीर यार अली जान
रेख़्ती
क्यूँ कड़ी सुनते किसी की दिल न आ जाता अगर
क्या करूँ शिकवा बुआ अपने दिल-ए-नादान का