aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "chaah"
पंडित चाँद नरायण राज़दाँ मोनिस
लेखक
चाप ख़ाना-ए-हैदरी
पर्काशक
चार यार पब्लिकेशन, इंदौर
बदरूद्दीन चाच
चाप ख़ाना-ए-मज्लिस
चापख़ाना काव्यानी, जर्मनी
किताब फ़रोशी व चापख़ाना-ए-इक़बाल, तेहरान
जामिया अय्यूबिया नसीर चक, पातेपुर, वैशाली
चापख़ाना मशरिक़ी, जर्मनी
चाड जी. लिंगवुड
चापख़ाना साज़मान बरनामा
चापख़ाना मूसवी, शीराज़
मोवस्स चाप-उ-इंतिशारात-ए-आसतान, तेहरान
चाप उफुक़, फ़रान्स
मीनार बुक डिपो चार कमान, हैदराबाद
कभी हम में तुम में भी चाह थी कभी हम से तुम से भी राह थीकभी हम भी तुम भी थे आश्ना तुम्हें याद हो कि न याद हो
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो हैदुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है
ऐ मिरी गुल-ज़मीं तुझे चाह थी इक किताब कीअहल-ए-किताब ने मगर क्या तिरा हाल कर दिया
जब तुझे मेरी चाह थी जानाँबस वही वक़्त था कड़ा मेरा
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाएऔर भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
चाहچاہ
love, Affection, Appetite, Hankering
a well, choice, desire, love
कुआँ, कूप, गढ़ा, गर्त ।।
Arabi Bol Chal
मोहम्मद अमीन
भाषा विज्ञान
Apna Gareban Chaak
जावेद इक़बाल
आत्मकथा
Qissa Char Darvesh
मीर अम्मन
नॉवेल / उपन्यास
Aadab-e-Zindagi
मौलाना अशरफ़ अली थानवी
इस्लामियात
ग़ालिब पर चार तहरीरें
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
आलोचना
Char Deewari
शौकत सिद्दीक़ी
Chai Ke Bagh
क़ुर्रतुलऐन हैदर
Urdu Ke Char Mazahiya Shair
अहमद जमाल पाशा
शायरी
Chaar Chehre
सुहैल अज़ीमाबादी
अफ़साना
Char Novelt
उपन्यास
Char Kahaniyan
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
गद्य/नस्र
Tareekh-e-Islam Ki Char Sau Ba-Kamal Khawateen
तालिब अल-हाश्मी
जीवनी
Sah Lisani Masdar Nama
हफीज़-उर-रहमान वासिफ़
अल्फ़ लैला के चार ड्रामे
सय्यद हामिद हुसैन
ड्रामा
Chahl Hadees
हज़रत अली
आरज़ू है वफ़ा करे कोईजी न चाहे तो क्या करे कोई
तुम उस के पास हो जिस को तुम्हारी चाह न थीकहाँ पे प्यास थी दरिया कहाँ बनाया गया
है नाज़-ए-हुस्न से जो फ़रोज़ाँ जबीन-ए-यारलबरेज़ आब-ए-नूर है चाह-ए-ज़क़न तमाम
चाह तो निकल सकी, न पर उमर निकल गईगीत अश्क बन गए
लेकिन उस को चाह थी मेरीवो ये भेद छुपा न सकी थी
बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गएमौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गए
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के
एक हम हैं कि हुए ऐसे पशेमान कि बसएक वो हैं कि जिन्हें चाह के अरमाँ होंगे
तुझ को देखा तो सेर-चश्म हुएतुझ को चाहा तो और चाह न की
ये दिलबरी ये नाज़ ये अंदाज़ ये जमालइंसाँ करे अगर न तिरी चाह क्या करे
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