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ग़ज़ल
ऐ 'अना' तुम मत गिराना अपने ही किरदार को
उन को कहने दो कि ख़ुद-दारी कहाँ आ गई
नफ़ीसा सुल्ताना अंना
ग़ज़ल
नफ़ीसा सुल्ताना अंना
ग़ज़ल
तू गया घर में मुझे छोड़ के तन्हा जब से
सर पटकते हैं सितमगर दर-ओ-दीवार से हम
सिपाह दार ख़ान बेगुन
ग़ज़ल
बिल-ख़ैर ख़ात्मा मिरा होवेगा हमदमो
हर-दम है दिल में हज़रत-ए-ख़ैर-उल-वरा की याद