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नज़्म
कोई 'आशिक़ किसी महबूबा से!
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!
किसी के दस्त-ए-इनायत ने कुंज-ए-ज़िंदाँ में
किया है आज अजब दिल-नवाज़ बंद-ओ-बस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दस्त-ए-तह-ए-संग-आमदा
बेज़ार फ़ज़ा दरपा-ए-आज़ार सबा है
यूँ है कि हर इक हमदम-ए-देरीना ख़फ़ा है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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नज़्म
याद
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ रौशनियों के शहर
सब्ज़ा सब्ज़ा सूख रही है फीकी ज़र्द दोपहर
दीवारों को चाट रहा है तन्हाई का ज़हर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तराना
दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिरे दर्द को जो ज़बाँ मिले
मिरा दर्द नग़मा-ए-बे-सदा
मिरी ज़ात ज़र्रा-ए-बे-निशाँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जरस-ए-गुल की सदा
इस हवस में कि पुकारे जरस-ए-गुल की सदा
दश्त-ओ-सहरा में सबा फिरती है यूँ आवारा